Wednesday, March 17, 2010

जन माध्यम जन पक्षधर्ता बनें - करमचंदाणी


जयपुर 14 मार्च, बाजारवाद के बढ़ते प्रभाव के चलते जन माध्यम भी बच नहीं पाये हैं बल्कि जिन सरोकारों को लेकर उन्हें संजिदा होना चाहिए उसमें साफ तौर पर गिरावट आ रही है। उक्त विचार दूरदन केन्द, जयपुर के कार्यकारी निदे’ाक हरी करमचंदाणी सामाजिक जनजागृति को समर्पित स्वयंसेवी संगठन परिवर्तन संस्थान के तत्वावधान में वि’व उपभोक्ता दिवस पर श्री भटटारकजी की नसिया स्थित शान्तादेवी ताराचन्द बड़जात्या कांÝेस हाल में आयोजित जन स्वास्थ्य, जन माध्यम और उपभोक्ता संरक्षण विषयक~ जन चेतना संगोष्ठी में अपने अध्यक्षीय उद~बोधन में व्यक्त कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि जन माध्यमों को जन पक्षधर्ता बनने की जरूरत है। आज जिस तरह से टेलीविजन चैनल गलाकाट प्रतिस्पर्धा में और अपनी टीआरपी को बढ़ाने के लिए मूल्यों के साथ समझौता कर रहे हैं उससे लगातार आम लोगों का मीडिया में वि’वास खत्म हो रहा है। उन्होंने ज्यादा मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि मीडिया को जिम्मेदार तरीके से जन समस्याओं और विकास के मुद~दों पर गम्भीरता बरतनी होगी। कमरचंदाणी ने कहा कि तमाम बाजार के दबावों के बावजूद भी दूरदर्’ान अपने सामाजिक सरोकारों और जनउपयोगी कार्यक्रमों से पीछे नहीं हटा।
संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में एम.आर. मोरारका जीडीसी रूरल रिसर्च फाउण्डे’ान के कार्यकारी निदे’ाक मुके’ा गुप्ता ने बताया कि हमनें पीढ़ी दर पीढ़ी जिस विरासत, रीतिरिवाज, संस्Ñति और ज्ञान को संजोकर रखा, वो अब बिखर रहा है। इसलिए ज्ञान के हस्तान्तरण के चैनल्स को पुर्नजीवित करना आव’यक है। गुप्ता ने खाद~य पदार्थों में बढ़ रही मिलावट को एक बड़ी चुनौती बताया और कहा कि पारम्परिक जन माध्यमों को लोक ’िाक्षण का प्रभावी माध्यम बनाया जा सकता है।
संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में जयपुर विद्युत वितरण निगम के सीएमडी आर.जी गुप्ता ने विस्तार से विद्युत सुधारों पर प्रका’ा डाला और कहा कि उपभोक्ताओं का दबाव ही कई बार बड़ी योजनाओं को बनाने और क्रियान्वित करने का जरिया बन जाता है। उन्होंने बढ़ते उपभोक्तावाद के दौर में अपनी जरूरतों को सीमित करने पर भी बल दिया।
संगोष्ठ में आका’ावाणी केन्दz, जयपुर के कार्यक्रम अधिकारी योगे’वर शर्मा ने कहा कि आदमी को गिनने की कुव्वत हमारे सिस्टम में नहीं है यानि मानवीय गरिमा को सबसे पहले स्थापित करने की जरूरत है। शर्मा ने इस बात पर दुख व्यक्त किया कि सरकारी माध्यमों का रवैया भी दूसरे वाणिज्यिक संस्थानों की तरह बढ़ रहा है।
भारतीय मानक ब्यूरो, जयपुर शाखा के निदे’ाक एन.के. गzोवर ने मानक निर्धारण प्रक्रिया के साथ ही हाWलमार्किंग के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इससे पहले अखिल राजस्थान उपभोक्ता संगठन महासंघ के अध्यक्ष डाW. अनंत शर्मा ने राजस्थान में उपभोक्ता संरक्षण की स्थिति के बारे में चर्चा करते वक्त कहा कि उपभोक्ता कल्याण कोष, उपभोक्ता निदे’ाालय और उपभोक्ता क्लबों के गठन के बावजूद भी आम उपभोक्ता के साथ धोखाधड़ी का खेल बन्द नहीं हुआ है।
वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी ने जन माध्यमों को अधिक ईमानदार और पारदर्ी बनाने पर बल दिया। जगन्नाथ यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. एम.के. भार्गव ने उपभोक्ता संरक्षण जैसे जन महत्त्व के विषय को पाठ~यक्रम में शामिल करने की आव’यकता बतलाई। संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन डाW. संजय मिश्र ने किया। अतिथियों का सम्मान संस्थान के जयपुर चेप्टर के समन्वयक डाW. अंुल शर्मा ने किया। कार्यक्रम का संचालन योिता उपाध्याय ने किया।

Tuesday, March 2, 2010

वो फाग का राग...

चुनावी पाळे ने गांव में प्यार-मोहब्बत की लहलहाती खड़ी फसल को तबाह कर दिया। लोगों ने दोनों तरफ से पैसा और अंग्रेजी ली, तो एक जगह तो धोखा निकलना ही था। और वैसे चुनाव का दूसरा नाम धोखा ही तो है। धोखा प्यार में मिले या मिले चुनावों में, उसका गम गहरे तक उतरता है...


होली तो हर बार आती है, और टैम पर उसे आना ही था। मगर इस बार गांवों में वो उत्साह नहीं दिख रहा। चारों ओर सन्नाटा पसरा है। चौपाल खामोश है। चंग उदास है। बच्चे कटे-कटे से हैं। कहीं टोलियां नजर नहीं आ रही, जो कई दिनों पहले ही दिख जाती हैं। खेतों में उगी फसलों से उठती खुशबू तो है, मगर उससे पैदा होने वाली मस्ती न जाने कहां काफूर हो गई। क्या बात है भई, सब खैरीयत तो है? किसी के चेहरे पर चहक नहीं, फागुन की कहीं महक नहीं। रंगों के इस मौसम में सब बेरंग से। बुझे-बुझे से। लगता है चुनावी पाळे ने गांव में प्यार-मोहब्बत की खड़ी फसल को तबाह कर दिया। इसको यूं कहें कि एक तो पहले ही लोगों में आपसी प्रेम जो दिनों-दिन कम होता जा रहा है, और उसमें इन चुनावों ने आग में घी का काम किया है। मतलब चुनावों की वजह से लोगों में मेल-मिलाप और कम हुआ है। जो कुछ कहीं कसर भी रही, तो वो मंहगाई ने पूरी कर दी।
पहले प्रदेश, फिर देश और फिर हाल ही पंचायत और पालिका, लगातार चुनाव पर चुनाव। पहले उनकी खबर, जो हार गए। मत पूछो, हार क्या गए, वो तो जैसे जिंदगी हार गए। पिछली दो फसलों की कमाई का सारा पैसा उम्मेद ने इस उम्मीद में लगाया कि महानरेगा से उसकी वसूली हो जाएगी। पर पहले ही सुलट गए, तो सारी प्लानिंग धरी रह गई। बड़ के गट्टे के ऊपर सभी दो-चार लोग जुट रहे हैं। उम्मेद रुकता है और बोलता है- आंखों के सामने लोग गाढ़ी कमाई को जीम गए और डकार भी नहीं ली। सीधा साफ धोखा। कितनी मस्ती और शांति थी जिंदगी अच्छी-भली कट रही थी। पर ये उड़ता तीर ले लिया। अंटी का पैसा गया, मन का सुकून भी और गांव में फालतू का बैर और मोल ले लिया। खीज कर बोलता है कि अक्कल मारी गई थी। इसी तरह सुरताराम ने भी बारह लाख की होली खेल ली। कुछ तो जमा पूंजी थी, तो कुछ रिश्तेदारों से उधार ली थी इस मुगालते में कि जैसे जीतते ही लौटरी लग जाएगी। हा, हन्त...सुरता बताता है कि लोगों में नेम धेम कुछ नहीं बचा। पानी हाथ में ले लिया, लौटा लूण गाळ लिया, और तो और मंदिर पर चढ़कर सोगन-शपथ हो गई, फिर भी बेहया और खुदगर्ज लोगों ने दोनों तरफ से पैसा और अंग्रेजी ली। अरे भाई, ऐसा था तो एक जगह तो धोखा निकलना ही था। और वैसे चुनाव का दूसरा नाम धोखा ही तो है। धोखा प्यार में मिले या मिले चुनावों में, उसका गम गहरे तक उतरता है। यह कौन समझाए किसी को। खुद पांच चुनाव हार के बैठा हूं, उन बातों को दसेक साल हो गए, पर टीस आज तक बरकरार है। ताऊ जुगल ठीक कहता है कि गांव में वो अपणेस खतम होग्यो। लोग खड़्या-खड़्या पीपल निगलज्यां, तो कोई फर्क कोनी पड़ै।
पर हैरत की बात तो ये है कि जो जीता, वो भी खुश नहीं नजर आ रहा। उसका अलग ही राग है। खबर है कि नरेगा का करोड़ों का बजट सीधा जन प्रतिनिधियों की गिरफ्त में नहीं होगा। बल्कि इस पर भी सरकारी अंकुश होगा। अब जब सीधे कोई खरीद ही नहीं, तो कैसे होगा विकास। कोई जीता-कोई हारा, पर मारा गया मुफ्त में भाईचारा।
नंगली गांव के नत्थू का दुख भी लगे हाथ सुनते चलो, कहता है कि बुरा हो इस पंचायती-राज का, जो लोगों में दूरिया बढ़ाने के सिवाय कोई काम नहीं कर रहा। नत्थू गए सालों से गांव की सुगनी भाभी को हर होली में रंगों से सराबोर कर दिया करता था, साल भर में एक बार जैसे उसके पास लाईसेंस था उसे छूने का। बड़ा सिहर-सिहर जाता था नत्थू। पर लगता है कि अब तो उसके लिए यह गुजरे जमाने की बात हो जाएगी। हो भी क्यूं न, सुगनी सरपंच जो बन गई है। और बनते ही उसकी चाल ही बदल गई है। लोगों से घिर गई है वो। रातों-रात उसे कई सारी बातें बताई और सिखाई जा रही है। पहले जो उसकी खोज-खबर तक नहीं रखते थे, वे अब रातों-रात उसके हमदर्द बन गए। कुछ भी कहो, नत्थू की तकलीफ जायज है।
इसी तरह मंगला और महावीर की कभी एक दांत टूटा करती थी, बड़े घनिष्ठ दोस्त हुआ करते थे। राम-लक्ष्मण का सा नाता। पर अब इक-दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहाते। बात छोटी-सी थी कि दोनों ही मित्रों ने दो अलग-अलग गुटों का साथ दिया और रिश्तों में फांट पड़ गई। इसी तरह रूपसी मनकोरी पर मन ही मन फिदा था नागरमल। उसे लगा कि अब प्रधान बनते ही उसकी मुराद पूरी होने वाली है कि अब उसे कौन रोक सकता है। मनकोरी एक तो जात की...और ऊपर से कमजोर की लुगाई। कमजोर की लुगाई माने गांव की भोजाई। और इस पर परधानी की अकड़। होली पर रंगों की रगड़ से उसकी रड़क उतारने पर उतारू है नागरमल। पता नहीं कहां गई वो प्यार की बोली, कहां गई गलियों की टोली, वो चंग की थाप और गिंदड़ की ताल, वो फाग के तराने। अब दिलों में जलती है होली और सच पूछो, तो हमने होली की मस्ती खो ली।