Tuesday, March 2, 2010

वो फाग का राग...

चुनावी पाळे ने गांव में प्यार-मोहब्बत की लहलहाती खड़ी फसल को तबाह कर दिया। लोगों ने दोनों तरफ से पैसा और अंग्रेजी ली, तो एक जगह तो धोखा निकलना ही था। और वैसे चुनाव का दूसरा नाम धोखा ही तो है। धोखा प्यार में मिले या मिले चुनावों में, उसका गम गहरे तक उतरता है...


होली तो हर बार आती है, और टैम पर उसे आना ही था। मगर इस बार गांवों में वो उत्साह नहीं दिख रहा। चारों ओर सन्नाटा पसरा है। चौपाल खामोश है। चंग उदास है। बच्चे कटे-कटे से हैं। कहीं टोलियां नजर नहीं आ रही, जो कई दिनों पहले ही दिख जाती हैं। खेतों में उगी फसलों से उठती खुशबू तो है, मगर उससे पैदा होने वाली मस्ती न जाने कहां काफूर हो गई। क्या बात है भई, सब खैरीयत तो है? किसी के चेहरे पर चहक नहीं, फागुन की कहीं महक नहीं। रंगों के इस मौसम में सब बेरंग से। बुझे-बुझे से। लगता है चुनावी पाळे ने गांव में प्यार-मोहब्बत की खड़ी फसल को तबाह कर दिया। इसको यूं कहें कि एक तो पहले ही लोगों में आपसी प्रेम जो दिनों-दिन कम होता जा रहा है, और उसमें इन चुनावों ने आग में घी का काम किया है। मतलब चुनावों की वजह से लोगों में मेल-मिलाप और कम हुआ है। जो कुछ कहीं कसर भी रही, तो वो मंहगाई ने पूरी कर दी।
पहले प्रदेश, फिर देश और फिर हाल ही पंचायत और पालिका, लगातार चुनाव पर चुनाव। पहले उनकी खबर, जो हार गए। मत पूछो, हार क्या गए, वो तो जैसे जिंदगी हार गए। पिछली दो फसलों की कमाई का सारा पैसा उम्मेद ने इस उम्मीद में लगाया कि महानरेगा से उसकी वसूली हो जाएगी। पर पहले ही सुलट गए, तो सारी प्लानिंग धरी रह गई। बड़ के गट्टे के ऊपर सभी दो-चार लोग जुट रहे हैं। उम्मेद रुकता है और बोलता है- आंखों के सामने लोग गाढ़ी कमाई को जीम गए और डकार भी नहीं ली। सीधा साफ धोखा। कितनी मस्ती और शांति थी जिंदगी अच्छी-भली कट रही थी। पर ये उड़ता तीर ले लिया। अंटी का पैसा गया, मन का सुकून भी और गांव में फालतू का बैर और मोल ले लिया। खीज कर बोलता है कि अक्कल मारी गई थी। इसी तरह सुरताराम ने भी बारह लाख की होली खेल ली। कुछ तो जमा पूंजी थी, तो कुछ रिश्तेदारों से उधार ली थी इस मुगालते में कि जैसे जीतते ही लौटरी लग जाएगी। हा, हन्त...सुरता बताता है कि लोगों में नेम धेम कुछ नहीं बचा। पानी हाथ में ले लिया, लौटा लूण गाळ लिया, और तो और मंदिर पर चढ़कर सोगन-शपथ हो गई, फिर भी बेहया और खुदगर्ज लोगों ने दोनों तरफ से पैसा और अंग्रेजी ली। अरे भाई, ऐसा था तो एक जगह तो धोखा निकलना ही था। और वैसे चुनाव का दूसरा नाम धोखा ही तो है। धोखा प्यार में मिले या मिले चुनावों में, उसका गम गहरे तक उतरता है। यह कौन समझाए किसी को। खुद पांच चुनाव हार के बैठा हूं, उन बातों को दसेक साल हो गए, पर टीस आज तक बरकरार है। ताऊ जुगल ठीक कहता है कि गांव में वो अपणेस खतम होग्यो। लोग खड़्या-खड़्या पीपल निगलज्यां, तो कोई फर्क कोनी पड़ै।
पर हैरत की बात तो ये है कि जो जीता, वो भी खुश नहीं नजर आ रहा। उसका अलग ही राग है। खबर है कि नरेगा का करोड़ों का बजट सीधा जन प्रतिनिधियों की गिरफ्त में नहीं होगा। बल्कि इस पर भी सरकारी अंकुश होगा। अब जब सीधे कोई खरीद ही नहीं, तो कैसे होगा विकास। कोई जीता-कोई हारा, पर मारा गया मुफ्त में भाईचारा।
नंगली गांव के नत्थू का दुख भी लगे हाथ सुनते चलो, कहता है कि बुरा हो इस पंचायती-राज का, जो लोगों में दूरिया बढ़ाने के सिवाय कोई काम नहीं कर रहा। नत्थू गए सालों से गांव की सुगनी भाभी को हर होली में रंगों से सराबोर कर दिया करता था, साल भर में एक बार जैसे उसके पास लाईसेंस था उसे छूने का। बड़ा सिहर-सिहर जाता था नत्थू। पर लगता है कि अब तो उसके लिए यह गुजरे जमाने की बात हो जाएगी। हो भी क्यूं न, सुगनी सरपंच जो बन गई है। और बनते ही उसकी चाल ही बदल गई है। लोगों से घिर गई है वो। रातों-रात उसे कई सारी बातें बताई और सिखाई जा रही है। पहले जो उसकी खोज-खबर तक नहीं रखते थे, वे अब रातों-रात उसके हमदर्द बन गए। कुछ भी कहो, नत्थू की तकलीफ जायज है।
इसी तरह मंगला और महावीर की कभी एक दांत टूटा करती थी, बड़े घनिष्ठ दोस्त हुआ करते थे। राम-लक्ष्मण का सा नाता। पर अब इक-दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहाते। बात छोटी-सी थी कि दोनों ही मित्रों ने दो अलग-अलग गुटों का साथ दिया और रिश्तों में फांट पड़ गई। इसी तरह रूपसी मनकोरी पर मन ही मन फिदा था नागरमल। उसे लगा कि अब प्रधान बनते ही उसकी मुराद पूरी होने वाली है कि अब उसे कौन रोक सकता है। मनकोरी एक तो जात की...और ऊपर से कमजोर की लुगाई। कमजोर की लुगाई माने गांव की भोजाई। और इस पर परधानी की अकड़। होली पर रंगों की रगड़ से उसकी रड़क उतारने पर उतारू है नागरमल। पता नहीं कहां गई वो प्यार की बोली, कहां गई गलियों की टोली, वो चंग की थाप और गिंदड़ की ताल, वो फाग के तराने। अब दिलों में जलती है होली और सच पूछो, तो हमने होली की मस्ती खो ली।

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