Wednesday, July 1, 2009
तालीम नहीं डिगि्रयां बांटते हैं हम
निजी क्षेत्र उच्च शिक्षा में अनगिनत नए पाठ्यक्रम ला रहे हैं, लेकिन सेवा से जुड़ा यह काम अब पूरी तौर पर व्यावसायिकता की गिरफ्त में आने के बाद बाकायदा धंधा बना दिया गया है। जाहिर है कि अब इसमें शराब और कुछ दूसरे किस्म का धंधा करने वाले लोग भी आ चुके हैं। एक काउण्टर से शराब बेचते हैं, तो दूसरे से शिक्षा। अच्छी जुगलबंदी है। अगर यहां केवल शिक्षक-प्रशिक्षण संस्थानों की बात की जाए, तो हालिया एक घटना बहुत बेचैन करने वाली है। एक निजी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति (चांसलर) के खिलाफ धोखाधड़ी को लेकर एक छात्रा के अभिभावकों ने प्राथमिकी दर्ज करवाई। जिसके बाद से कुलाधिपति महोदय को जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया गया। शैक्षणिक व्यवस्था पर फिर एक सवालिया निशान। बीएड पाठ्यक्रम में दाखिला लेने वाली उक्त छात्रा का आरोप है कि पाठ्यक्रम की मान्यता को लेकर उन्हें अंधेरे में रखा गया और इस तरह से उसका पूरा साल दांव पर लग गया और फीस जो गई, सो अलग। आज कुछ डिगि्रयों को लेकर जो युवाओं में जुनून है, वो कुछ हद तक रोजगार की समस्या से जुड़ा है। इसलिए हर साल हजारों की संख्या में राज्य से बाहर के कुछ संस्थानों से यहां के विद्यार्थी बीएड करते रहे हैं। ये संस्थान बरसों से बड़ी तादाद में बीएड डिग्रीधारियों को तैयार करने में मोटी चांदी काट रहे हैं। इसमें खास बात ये है कि आपको वहां साल भर रुकने की कतई जरूरत नहीं है, बस सुविधा शुल्क अदा कर दीजिए। सीधे तौर पर कहा जाए तो यह डिगि्रयों को बेचने जैसा है। यही शायद वह वजह रही होगी कि राज्य सरकार ने यहां भी बड़ी संख्या में बीएड कॉलेज खोल डाले। चाहें वे शिक्षा के मानकों पर खरे नहीं उतरते हों। राज्य में शिक्षा के इतने संस्थान खुलना सुखद है लेकिन ये बात भी दिल को कचोटती है, जब हमें मालूम होता है कि इन संस्थानों में हो क्या रहा है। वास्तव में ये सारे संस्थान धीरे-धीरे खुले विश्वविद्यालय के ऑव कैम्पस सेण्टर में तब्दील हो रहे हैं, जहां पढ़ाई के अलावा सभी कुछ पूरी गंभीरता से चलता है। बस आप एक और फीस दे दीजिए, पहली दाखिला लेने की तो आप काउंसलिंग के वक्त दे चुके होते हैं और दूसरी फीस होगी आपके नियमित या बिल्कुल भी नहीं आने की। क्यों हैं न एक अच्छी बात? और फिर इन संस्थानों के पास तो पर्याप्त योग्य शिक्षक भी नहीं हैं। अब सवाल ये है कि सरकार इन खरपतवार की तरह उग आए शैक्षणिक संस्थानों की निगरानी का काम कैसे करे? मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल का बिल्कुल ताजा बयान इस सारी स्थितियों में उम्मीद तो जगाता है, जिसमें उन्होंने शैक्षणिक कदाचार को रोकने और उच्च शिक्षा में विद्यार्थियों से झूठ बोलकर धन उगाही करने वाले संस्थानों पर लगाम लगाने और इसके लिए कानून बनाने का इरादा जताया। यकीनन अभी नहीं, तो कभी नहीं वाली स्थिति आ चुकी है, लिहाजा सरकार की ओर से ऐसी ठोस पहल होनी चाहिए जिसमें तंत्र की बुनियादी खामी का फायदा उठाकर शुरु होने वाले संस्थानों की समीक्षा हो, उन्हें तत्काल या तो तय मानकों और नियमों में जारी रखने की बाध्यता करें या फिर आंशिक नहीं, पूरी तरह उनकी मान्यता खारिज करें। वरना हमारे प्रदेश की डिगि्रयों की दुर्गति होते देखने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
स्वागत है आपका ब्लॉगजगत पर शुभकामनाओं के साथ।
ReplyDeleteब्लॉग जगत पर मेरी जानकारी में आप तीसरे संजय उवाच हो प्रभु ;)
bilkul sahi likha hai , shikcha k mandir bhi dukana mai tabdeel ho gayai hai , halat chintajank hai
ReplyDeletechinta na karo Sanjay Bhaiya jaldi hi Yashpal Ancle in dukano ko band karvane vale hai
ReplyDeletechinta na karo Sanjay Bhaiya jaldi hi Yashpal Ancle in dukano ko band karvane vale hai
ReplyDeleteब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.
ReplyDeleteब्लोग जगत मे आप का स्वागत है
ReplyDeleteआज शिक्षा का व्यावसायीकरण हो गया है ।
आज शिक्षा लेने से मतलब नही है भीख लेने से मतलब है
हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |
ReplyDeleteधृतराष्ट्रों की दुनिया में क्या कुछ और उम्मीद भी की जा सकती है, ऐ संजय !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeletenice.narayan narayan
ReplyDeletebadhai
ReplyDelete