Wednesday, August 19, 2009

ये सच है या कि कयामत...

ये हैरत की बात है कि टीवी चैनल आपसी गला-काट प्रतिस्पर्धा के चलते अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए जिस तरह के कार्यक्रम गढ रहे हैं, वे हंसते-खेलते लोगों के संसार को उजाड़ रहे हैं।
आजकल बुद्दू बक्से ने कोहराम मचा रखा है, क्योंकि लोगों के जेहन में उठा तूफान शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा। स्टार टीवी पर सच का सामना रियलिटी शो में पूछे गए कुछ सवाल भारतीय जनमानस में, खासतौर पर मध्यम और निन मध्यम वर्ग में, परेशानी का सबब बन गए हैं। वे सवाल नश्तर की तरह दापत्य में चुभ रहे हैं और पति-पत्नी के सुखी जीवन में कडवाहट घोल रहे हैं। कहीं पति तो कहीं पत्नी, दोनों ही अपने जीवन साथी को शक की नजर से देख रहे हैं। इसी बहाने कम से कम हमारे समाज की परत दर परत चढ़ती जा रही उस अप-संस्कृति का चीरहरण तो हो रहा है जिस के नाम पर हमने इक झूठा आवरण और आभा-मण्डल बना रखा है और आत्म-मुग्धता की पराकाष्ठा पर आ पहुंचे हैं। लेकिन देखने वाली बात यह है इस कीचड़ को हम क्यों इतना ऊंचा उछाल रहे हैं। आखिर वह गिरना तो नीचे ही है। कुछ ही असेü पहले मैं दिल्ली प्रवास पर था और इंडिया टीवी पर एक कार्यक्रम देख रहा था तभी रजत शर्मा की अपील भी सुनने को मिली जिसमें वे कहते हैं कि लोगों की निजी जिंदगी में तांक-झांक करना या कास्टिंग काउच जैसी चीजों को लेकर ही प्रसारण करना उनका काम नहीं है। और वे जिमेदार चैनल की हैसियत से ही खबरों का चयन और प्रसारण करेंगे। इशारा साफ था अमन वर्मा, शçक्त कपूर और इसी तरह के कुछ दूसरे नामचीन लोगों की कारगुजारियों पर से परदा उठाना वगैरह-वगैरह। चाहे सनसनीखेज खबरों के लिए एकबारगी टीवी की टीआरपी क्यूं न बढती हो, पर ये तय है कि उसकी साख लगातार गिरेगी जरूर। लेकिन यहां बात लोगों की जिंदगी के अंदरूनी और स्याह सच को सामने लाने की बात हो रही है।
मेरे एक मित्र के ब्लॉग पर एक पंçक्त को पढ़कर मेरे पसीने आ गए, जिसमें लिखा था- मैं कसम खाकर कहता हूं कि इस ब्लॉग पर जो लिखूंगा, सच लिखूंगा। सच के सिवा कुछ भी नहीं। मैंने उसे ईमेल तुरत मारी और जिसमें कहा- पापे, तुझे हो क्या गया है.. बौरा गया है तू। क्या सच बोलना चाहता है, बता? और तेरे इस तरह से सच बोलने से न समाज का कुछ भला होने वाला है और न तेरा। क्यों तू अपनी गिरस्थी को आग लगाने पर तुला है। तुझे नहीं मालूम कि ये टीवी पर चमकते हुए चेहरे हमारी पारिवारिक नींव को ही हिला देंगे। और इनका कुछ नहीं बिगडना। ये रईसजादे पैसों के लिए कुछ भी करेंगे। और कल तक चंद पैसों के लिए काम करने वाले कहां के सेलिब्रिटी हो गए। ये सब इलेक्ट्रोनिक माडिया की पैदा की हुई नाजायज औलादें हैं जो रातों-रात करोड़ों में खेलना चाहते हैं और वह भी किसी कीमत पर क्यों न हो। फिल्मी माहौल में पल रही ये पीढ़ी पश्चिम के सारे संस्कारों से युक्त और विशुध्द भारतीयता से मुक्त है। इन्हीं होनहारों की बदौलत हाल ही में एक सवेü में यह पाया गया कि विवाहेत्तर और विवाह से पूर्व किसी भी तरह के शारीरिक संबंधों का आंकडा 42 फीसदी तक पहुंच गया है। अब ये अपने आप मेें विवाद का विषय हो सकता है कि सवेü एजेन्सी ने शामिल किए गए लोगों का आधार क्या रखा।
इसी से जुड़े हालिया दो बडे़ काण्ड सुर्खियों में छाए। सच का सामना कार्यक्रम की तर्ज पर ही दो दपत्तियों ने इसी तरह की निरी मूखüता को अंजाम दिया और देखते-देखते दो घरों की खुशियां राख हो गई। ऐसे ही खेल-खेल में पति-पत्नी में सवालों का सिलसिला शुरू हुआ तो सवाल निकला कि शादी से पहले पत्नी के किसी मदü से शारीरिक सबंध थे या नहीं। और जोश-जोश में पत्नी ने जब बताया कि उसके पहले भी किसी के साथ अंतरंग रिश्ते रहे हैं तो पति अवाक रह गया और सद्मे में आ गया। इसी सद्में में उसने खुदकुशी करली। एक और मामले में इसी तरह की बात जब पति पत्नी में हो रही थी तो पत्नी विजेता के अंदाज में बोली कि उनके दो बेटों में एक उनका नहीं है यानी गैर मदü का है। इतना सुनना भर था कि पति ने धारधार ब्लेड से पत्नी को हलाक कर दिया। हालांकि इन दोनों उदाहरणों से हम यह नहीं स्थापित करना चाहते कि महिलाएं ज्यादा वफादार होती हैं या पुरुष, बल्कि इसका मंतव्य सीधे तौर पर बेलगाम हो रहे टेलीविजन चैनलों की मंशा और नई स्थापित की जा रही संस्कृति और मूल्यों की ओर ध्यानाकर्षण करना ही है जो दबे स्वर में भारतीय परपराओं और हमारी विवाह संस्था को तबाह करने पर तुले हैं। इसीलिए याद आती है स्कूल के जमाने में पढ़ी पाठ्य-पुस्तक की वह सूçक्त, जो सच बोलने के साथ खास हिदायत भी देती है। संस्कृत में सूçक्त है- सत्यम ब्रूयात प्रियम ब्रूयात, न ब्रूयात सत्यम अप्रियम। अरथात सत्य बोलो, प्यारा बोलो मगर कभी अप्रिय लगने वाला सत्य न बोलो।

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