Monday, November 16, 2009

कौन बड़ा है! राष्ट्र या महाराष्ट्र?

महाराष्ट्र विधानसभा के भीतर घटी घटना से हर राष्ट्रीय सोच का व्यक्ति आहत है। हो भी क्यों नहीं। आखिर देश की स्वतंत्रता के भार को वहन करने वाली राष्ट्र भाषा हिन्दी के साथ इस तरह का बर्ताव? चिंतनीय और निंदनीय भी। एकबारगी लगा जैसे आजमी को तमाचा मारने वाले कुछ विदेशी भाडे़ के लोग थे, जिन्हें भारत और भारतीयता की कोई परवाह नहीं। तुच्छ स्वार्थों में फंसे कुछ भटके लोगों की घृणित कारगुजारी से यादों में दर्ज इन मराठी माणुसों से एक मुलाकात ताजा हो गई। मुंबई के वाशी रेलवे स्टेशन के नजदीक शिव सेना के मुखपत्र सामना के दफ्तर का एक दृश्य। मौका था सामना में आधुनिक मशीनों की लांचिंग। संजय निरुपम उस समय संपादक हुआ करते। कार्यक्रम में चुनिंदा व्यक्तियों ही प्रवेश। उसी दिन यानी 23 जनवरी को बाल ठाकरे का जन्मदिन भी था ७५वां। मैं अपने एक मित्र के साथ मुंबई प्रवास पर था। और मित्र ने बालासाहब से मुलाकात की इच्छा प्रकट की। थोड़ा आकर्षण मेरे अंदर भी था। मैंने स्वर्गीय विजय लोके (सेना के नेता और मित्र) और माहिम के एमएलए सुरेश गंभीर से बातचीत कर कार्यक्रम में घुसने का रास्ता बनाया। कार्यक्रम में तुरई नाद के साथ ही बालासाहब का प्रवेश और शिवाजी महाराज की जय-जयकार से आसमान गूंज उठा। उस वक्त तक शिव सेना में टूटन नहीं आई थी। मंच पर नारायण राणे के साथ मनोहर जोशी, राज और उद्धव भी थे। बालासाहब मराठी में बोले और उन्होंने हंसाया भी बहुत। बाद में उन्हें बधाई देने जब हम मंच पर पहुंचे, तो मनोहर जोशी ने मेरा परिचय कराया हिन्दी में। स्वयं राज और उद्धव ने मुझसे हिन्दी में ही बात की। बालासाहब ने भी बिना किसी कठिनाई के हिन्दी में संवाद किया। बाद में खाना खाने के दौरान भी सुभाष देसाई और दूसरे लोगों से बात हुई। कहीं भी नहीं लगा कि ये लोग इतने संकीर्ण भी हो सकते हैं, लेकिन सियासत की खातिर हमारे यहां क्या -क्या नहीं होता? सवाल ये है कि क्या राष्ट्र से बड़ा है महाराष्ट्र? क्या कुछ लोगों को उनकी हदों से बाहर जाती निजी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति करने के लिए खुली छूट दी जाती रहेगी? क्या भारत का बाशिंदा अपने ही देश की सरहदों में अपमानित होगा? और सत्ता में बैठे बेशर्म लोग कब तक अपने राजनीतिक हित साधने के लिए मूकदर्शक बने रहेंगे? देश की आत्मा पर चोट करते इन सांस्कृतिक तालिबानियों को रोकना होगा। क्योंकि देश की स्वाधीनता, एकता और अखण्डता के लिए जिन हुतात्माओं ने सर्वस्व दे दिया, उनके उस बलिदान को कलुषित करने का हक किसी भी माणुस को नहीं दिया जाएगा। हाल ही आया सचिन तेंदुलकर का बयान राजटाइप लोगों को बड़ा संदेश देता है कि उन्हें महाराष्ट्रीयन होने का गर्व है, लेकिन मुंबई भारत का एक हिस्सा है, और वे खेलते हैं देश के लिए। यकीनन यही जज्बा हर नागरिक में होना चाहिए। तभी हम बाहरी शçक्तयों की चुनौतियों का मुकाबला कर सकते हैं। अपनी निजताओं को स्वीकारें और उन्हें ताकत बनाते हुए वृहत्तर राष्ट्रहित में समाहित करें। वैसे भी राष्ट्रीय चुनौती और प्रतिष्ठा की कोई भाषा नहीं होती है, भावना होती है और जज्बा होता है। यानी आखिरकार, क्या जयहिंद कहने में जय महाराष्ट्र या जय राजस्थान शामिल नहीं होता?

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