Thursday, February 11, 2010

महंगाई में मर्ज प्रेम का!


पहले चीजें बहुत सस्ती मिला करती थी, मगर प्रेम तो तब भी अनमोल ही हुआ करता, मगर आजकल सबसे सस्तापन प्यार में ही दिख रहा है और महंगापन चीजों में
बुजुर्गवार कई बार चर्चा करते हैं बीते हुए जमाने की। उसमें सबसे खास जो विषय होता है, वो होता है सस्ता। सस्ते के जमाने की बातें कि कितने आने में कितने मन अनाज आ जाया करता, कितने रुपये में देसी घी, मामूली पैसों में घरभर की तरकारी और चंद रुपयों में चलने वाला घर खर्च, स्कूल फीस ऐसी कि उस पर यकीन ही न हो। सब तरफ सस्तेपन की मिसालें। इन तमाम चर्चाओं में कभी भी गलती से भी, प्यार-व्यार का जिक्र नहीं होता। जैसे कि यह बिलकुल तुच्छ और बेमतलब की बेकार बकवास हो।
बहरहाल प्रेम-दिवस की धूम सब तरफ मची है। क्या बाग-बगीचे, क्या थिएटर, और क्या लाइब्रेरी, और तो और आस्था के मंदिर देवालय भी बाकी नहीं बचे हैं, वहां पर भी गलबइयां डाले जी भरकर झूठ बोला जा रहा है, कोई चांद तारे तोड़ रहा है, तो कोई किसी की जुल्फों को सोने सी चमकती बता रहा है, तो कोई होठों को स्ट्राबेरी और गुलाब। दुनिया की कोई भी अच्छी चीज न बची होगी, हर किसी से महबूबा की हरेक अदा को जोड़ा जा रहा है। भई वाह, हर किस्म के जोड़े देखे, मगर उनमें इस तरह की लफ्फाजी या कहिए, प्यार की गुटरगूं लगभग एक जैसी ही है। पर इस प्रेम प्रलाप में, माफ कीजिए प्यार के इजहार में हर कोई तनाव में दिख रहा है। अब सवाल ये मौजूं है कि प्रेम में तनाव कैसा? देखा जाए तो ये एकदम विपरीत चीजें हैं। पहले मंदी का रोना था, अब थोड़े-बहुत हालात बदले भी, तो लगता है कि ये महंगाई अब पीछे पड़ गई। महंगाई में मर्ज प्रेम का, महंगाई में कर्ज प्रेम का और निभाना अब फर्ज प्रेम का। दिनों-दिन महंगाई आकाश पर टंगने को तुली है और प्रेमी हैं कि उनकी जान सांसत में आई हुई है। कहां से और कैसे खरीदे महंगे-महंगे उपहार। तनख्वाह तो पहले ही बारह बजाए हुए है, ऊपर से ये प्यार। अब कर लिया, तो कर लिया या समझो कि हो गया। पर अब लगता है कि गुनाह हो गया। गुनाह भी ऐसा, जिसकी माफी नहीं। तो फिर ठीक है जब सिर ही ओखली में दे दिया है, तो फिर मूसल से क्या डरना?
जेब में रखे मोबाइल पर रिंगटोन बजी है, गाना चलता है- पैसा-पैसा करती है और पैसे पे क्यूं मरती है। पैसे पर मरने वाली अदा कैसी होती है, उसका तो हमें नहीं पता। हां, जिस बेवफा सनम पर हम मरते हैं, उसमें किसी तरह का दिखावा नहीं। दिल से प्यार करते हैं। तो क्या उसका जुलूस निकालना जरूरी है। अब देखो, जुल्मो-सितम की हद तो ये है कि जिस स्वप्न सुंदरी से आंखे चार हुई, उसने कहा कि वो अपनी पंद्रह-बीस फ्रेंड्स को वेलेनटाइन-डे के मौके पर एक पार्टी देना चाहती है और मुझसे सभी को इंट्रोड्यूस भी करवा देगी। मैंने कहा कि इंट्रोड्यूस तो ठीक है, मगर इस पार्टी की जरूरत क्या है? क्योंकि केवल एक पार्टी की वजह से सारा बजट बिगड़ जाएगा और फिर पार्टी करनी ही है, तो इतने झमेला किस लिए? हम दो क्या काफी नहीं। लेकिन मैडम है कि टस से मस नहीं। मालूम पड़ा कि फ्रेंड्स को पहले से ही इनवाइट किया जा चुका है और वैन्यू तक तय कर लिया गया। तो फिर कर लो पार्टी भी। मुझे बताने या बुलाने की जरूरत क्यों आ पड़ी। मोहतरमा ने बड़ी मासूमियत से कहा कि ये मेरे लिए एक सरप्राइज पार्टी है। वैसे सभी अपने अपने प्रेमी के साथ बाहर कहीं न कहीं जा रहे हैं, ये तो मेरे कहने पर रुक गए हैं। मैंने पूछा कि वैन्यू कहां रखा तो बताया गया कि शहर का एक नामचीन फाइव स्टार होटल। मुझे किसी फिल्म के कोर्ट का एक दृश्य याद हो आया, जिसमें जज मुजरिम की सजा मुकर्रर कहता है कि टू हैंग अंटिल डैथ। अब अगर मैं पीछे हटूं तो फिर कई दूसरे लोग भी हैं, जिन पर मोहतरमा दांव खेल सकती हैं और फिर अब तक काफी इन्वेस्ट भी हो चुका है मेरी तरफ से। तो सोच रहा हूं कि कुछ और सही।
सच पूछो तो किसी भी भले आदमी के लिए तो ये प्यार-व्यार सब काम की चीज नहीं। मेरे साथी राममोहन को लीजिए, नई-नई सगाई हुई है, मतलब सीधे दिल का कनेक्शन। एनओसी के लिए चक्कर नहीं लगाने पड़े। मगर शादी का कुछ अता-पता नहीं। और शादी और सगाई के बीच की दूरी इस लिहाज से खतरनाक हो गई है कि मैडम के लिए नित-नए गिफ्ट का इंतजाम करो। इस जान की आफत महंगाई में प्यार का पंगा तो ले लिया, मगर ये सिलसिला जितना लंबा खिंच रहा है, उतना ही दर्दनाक बनता जा रहा है। वाकई, प्रेम में अब कोई भावनाएं और एक-दूसरे के लिए त्याग जैसी बातें काफूर हो गई हैं। प्रेम एटीएम हो गया है कि बस तुरंत निकालो और तुरंत खर्चो। सब्र नहीं, और कल की किसे चिंता। खाए जा रहा है प्यार का सस्तापन और चीजों का महंगापन और खोता जा रहा है अपनापन।

1 comment:

  1. दिखावट के प्यार में लेन-देन का प्रचलन आजकल कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है ....अच्छा लेख

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